शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

सच्चे और नेकदिल आदमी की कहानी - बजरंगी भाई जान

चित्र गूगल से साभार
पहली बार सलमान खान की कोई ऐसी फिल्म देखने को मिली जिसमे उनका स्टारडम कम रहा। फिल्म में सलमान पिटता है, आम आदमी की तरह कमजोर भी है। बजरंगी भाई जान में आप सलमान को नए अवतार में पाएंगे। एक था टाइगर के बाद कबीर खान एक बार फिर सलमान को लेकर आये हैं।  एक था टाइगर की तरह ये फिल्म भी भारत और पाकिस्तान से संबधित है।  फर्क बस ये है कि बजरंगी भाई जान में सलमान खान एक जासूस नहीं एक भावुक और नेकदिल के रोल में हैं।
कहानी- जैसा की लोग पहले ही अनुमान लगा रहे थे कि फिल्म एक छोटी बच्ची पर बेस्ड है।  कहानी शुरू होती है पाकिस्तान से। जहाँ मुन्नी (हर्षाली मल्होत्रा) अपने परिवार के साथ रहती है जो कि एक छह साल की बच्ची है।  वो बोल नहीं सकती।  बचपन से गूंगी है।  इसी बात की चिंता उसके घर वालों को सताती है। उसकी अम्मी को कोई बताता है कि दिल्ली के दरगाह पर हर मन्नत पूरी हो जाती है। शाहिदा (हर्षाली को मुन्नी नाम भारत में बजरंगी देता है ) अपनी अम्मी के साथ दिल्ली के दरगाह पर आती है लेकिन वापस पाकिस्तान नहीं जा पाती और भटक जाती है। अपनों की तलाश में इधर-उधर भटक रही शाहिदा की मुलाकात नेक दिल इंसान पवन कुमार चतुर्वेदी उर्फ बजरंगी (सलमान खान) से होती है। पवन उर्फ़ बजरंगी कुमार निठ्ठला और भोंदू है साथ ही हनुमान जी का परम भक्त है। बजरंगी शाहिदा का नाम मुन्नी रखता है और उससे उसका पता पूछता है लेकिन वो बता नहीं पाती। बजरंगी उसे कई शहरों के नाम गिनता है लेकिन वह इनमें से किसी भी शहर की नहीं होती। इधर सलमान को रसिका से (करीना कपूर खान) से प्यार हो जाता है। दोनों की लव स्टोरी भी चलती रहती है।  एक दिन भारत और पाकिस्तान के बीच चले रहे मैच में भारत के हरने पर मुन्नी जब नाचने लगती है तब बजरंगी को पता चलता है कि मुन्नी पाकिस्तानी है। अब बजरंगी का एक ही मकसद था, मुन्नी को उसके घर तक पहुंचाना। काफी कोशिशों के बाद जब बजरंगी को पाकिस्तान का वीजा नहीं मिलता तो वो बिना वीजा ही  मुन्नी को लेकर पाकिस्तान चला जाता है।  पाकिस्तान में उसकी मदद पाकिस्तानी पत्रकार (नवाजुद्दीन सिद्दिकी) करता है।  मुन्नी को उसके घर तक वो पाकिस्तानी पत्रकार लेकर जाता है।  इस बीच सलमान को किन - किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है।  बजरंगी कैसे उस छोटी सी बच्ची को उसके माता-पिता के हवाले करता है, बजरंगी वापस अपने देश आ भी पाता है कि नहीं। फिल्म इसी कहानी के इर्द-गिर्द घूमती है।
एक्टिंग-सलमान खान अपने रोल में एकदम फिट बैठे हैं। सीधे-सादे पवन कुमार चतुर्वेदी के किरदार को उन्होंने बखूबी निभाया है । नवाज एक बार फिर भी छा गए।  नवाज हर एक सीन में जमे हैं। नवाज लाजवाब एक्टर हैं और इस फिल्म में भी उन्होंने ये साबित कर दिया।  करीना कपूर खान ने एक स्कूल टीचर की भूमिका हैं. उनके लिए फिल्म में बहुत ज्यादा कुछ है नहीं लेकिन फिल्म में उनकी खूबसूरती देखने लायक है।  अब आते हैं फिल्म की सबसे खूबसूरत कैरेक्टर पर।  हम बात कर रहे हैं मुन्नी यानि हर्षाली मल्होत्रा का। मात्र छह साल की उम्र में हर्षाली ने मूक कैरेक्टर में जान फूंक दी। हर्षाली की मासूम आँखे और सुन्दर चेहरा आप भूल नहीं पाएंगे।

म्यूजिक-  फिल्म का प्रीतम चक्रवर्ती और कोयल श्याम ने दिया है। 'सेल्फी ले ले रे', 'भर दे झोली', 'आज की पार्टी मेरी तरफ से', तू चाहिए' जैसे गाने पहले से ही लोगों की जुबान पर हैं। फिर भी सलमान की पिछली फिल्मों की तरह बजरंगी भाई जान का संगीत थोड़ा कमजोर है।  
देखें की नहीं -आप कुछ नया देखना चाहते हैं तो बजरंगी भाई जान जरूर देखें।  पहली बार भारत की किसी फिल्म के माध्यम से आपको पाकिस्तान की अच्छी छवि देखने को मिलेगी। इसके अलावा आप करीना और नवाजुद्दीन सिद्दिकी की एक्टिंग के लिए फिल्म देख सकते हैं। सलमान के फैन तो ये  देखेंगे ही। इसके अलावा हर्षाली मल्होत्रा की क्यूटनेस और खूबसूरत अदाकारी के लिए भी फिल्म देखी जा सकती है। कुल मिलकर फिल्म अच्छे सन्देश के साथ आपका मनोरंजन भी करेगी।

रेटिंग- 3 .5/5

शनिवार, 11 जुलाई 2015

फिल्म समीक्षा - एक्शन, प्यार और बदले की कहानी 'बाहुबली'

2015 की मोस्ट अवेटेड फिल्मों में से एक एसएस राजामौली की फिल्म बाहुबली इस शुक्रवार को सिनेमा घरों में प्रदर्शित हो गयी. एसएस राजामौली ने इससे पहले ईगा और मगधीरा जैसी शानदार फिल्मों की सौगात दर्शकों को दे चुके हैं। बाहुबली उनकी हिंदी दर्शकों को एक सौगात ही कही जाएगी।  फिल्म के हिंदी वर्जन में चूंकि बतौर प्रोडूसर कारन जौहर भी शामिल हैं तो फिल्म देखने की उत्सुकता दर्शकों में पहले से ही थी। फिल्म को भारत की सबसे महंगी फिल्म कही जा रही है. फिल्म एक साथ 4000 से अधिक थियेटरों में रिलीज की गयी है। 
कहानी - फिल्म की कहानी एक साहसी युवक शिवुदू (प्रभास) की है। बचपन से ही वे अपने फैंटिसी वर्ल्ड में रहता है और जल पर्वत पर चढ़ने की इच्छा रखता है। कई बार वो उस पर्वत पर चढ़ना चाहता है लेकिन असफल हो जाता है।  उसकी माँ ये कतई नहीं चाहती कि वो उस पर पहाड़ी पर जाये।  शिवुदू बचपन में अपनों से बिछड़ जाता है और जंगल में रहने वाला एक दम्पति उसे पालता है. वह जंगल में अपनी जिंदगी बिताता है। एक दिन वे अपनी इच्छा को पूरा करता हुआ जल पर्वत पहुंच जाता है, जहां उसकी मुलाकात अवंतिका (तमन्ना भाटिया) से होती है। दोनों को प्यार हो जाता है, इसके बाद शिवुदू को अपने असली माता-पिता अमरेंद्र बाहुबली (प्रभास) और देवासना (अनुष्का शेट्टी) व उनके लाइफ के विलेन भल्लादेव (राणा दग्गुबाती) के बारे में पता चलता है।  जनता उसे बाहुबली नाम देती है और उसे भगवान मानने लगती है. कहानी आगे बढ़ती है। भल्लादेव कौन है और क्यों शिवुदू उसकी वजह से अपने असली माता-पिता से दूर हो जाता है, उसे वहां के लोग अपना भगवान क्यों मानते हैं ? पूरी कहानी इसी के इर्द-गिर्द घूमती है.
एक्टिंग- बात अगर एक्टिंग की की जाये तो सभी कलाकारों ने अपने रोल के साथ न्याय किया है। शिवुदू के रोल में प्रभास ने बाहुबली और शिवदू, दोनों रोल में बढ़िया अभिनय किया है. हाँ ये भी सत्य है की डायलॉग्स डिलेवरी के डबिंग में कहीं न कहीं खामी जरूर दिखी है। भल्लदेव के रोल में राणा दग्गुबाती ने न सिर्फ अपने कद-काठी का बेहतरीन प्रदर्शन किया है बल्कि अपने रोल को भी संजीदा से निभाया है। अवंतिका के रोल में तमन्ना भाटिया की ये फिल्म हिंदी दर्शकों के बीच जरूर उनकी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराएगी। देवसेना के छोटे रोल में अनुष्का शेट्टी ने अपने अनुभव का बढ़िया फायदा उठाया और अपने रोल को जीवंत कर दिया। 
म्यूजिक- जैसा की साउथ की फिल्मों का संगीत अक्सर कमजोर रहता है वो इस फिल्म में दिखा। गाने फिल्मों में खानापूर्ति मात्र के लिए हैं जिसे दर्शक सिनेमा हॉल से बाहर आने पर जरूर भूल जाएंगे। 
देखें की नहीं - अगर आप हॉलीवुड और साउथ की फिल्मों के शौक़ीन हैं तो बाहुबली आपका भरपूर मनोरंजन करेगी. फिल्म को सीजी इफ़ेक्ट ने और भी लाजवाब बना दिया है।  बाहुबली की सबसे ज्यादा चर्चा उसके कंप्यूटर तकनीक के चलते हुई। फिल्म में सींस को रियल दिखाने के लिए राजमौली ने सीजी इफेक्ट्स का बहुत अच्छी तरह इस्तेमाल किया। फिल्म की एक्शन और कहानी दोनों आपको पसंद आएंगे। इस सप्ताह बाहुबली  मनोरंजन का फुल डोज साबित हो सकती है। 
निर्देशक-  एस.एस. राजमौली
कलाकार- प्रभास, राणा दग्गुबाती, तमन्ना भाटिया, अनुष्का शेट्टी, रमैया
प्रोड्यूसर- शोभू यरलागड्डा, प्रसाद देवनेनी और करन जौहर
म्यूजिक डायरेक्टर- एम. एम. कीरवानी

रेटिंग- 3 .5/5

शनिवार, 6 जून 2015

दरकते रिश्तों की कहानी- दिल धड़कने दो

चित्र गूगल से साभार
जोया अख्तर की बहुप्रतीक्षित फिल्म दिल धड़कने दो इस शुक्रवार को रिलीज हो गई। अगर आप जोया की फिल्मों के शौकिन हैं तो ये फिल्म आपको निराश करेगी। जोया की लक बाई चांस और जिंदगी न मिलेगी दोबारा की तरह दिल धड़कने दो नहीं बन पाई। भारी-भरकम स्टारकास्ट होने के बावजूद फिल्म लगभग तीन घंटे बांधें रख पाने में असफल साबित हुई है।

कहानी- पूरी कहानी मेहरा परिवार के इर्द-गिई घूमती है। मेहरा परिवार के मुखिया कमल मेहरा (अनिल कपूर) एक बड़े और सफल बिजेनसमेन हैं। उनकी पत्नी नीलम मेहरा (शेफाली) दोनों रहते तो साथ हैं लेकिन उनमें बनती नहीं। इनकी बेटी आयशा (प्रियंका) की शादी मानव (राहुल बोस) से हो चुकी है। आयशा भी अपने पिता की तरह सफल व्यवसायी है लेकिन मानव के साथ खुश नहीं है। कबीर मेहरा (रणवीर सिंह) मेहरा परिवार का वारिस है। कबीर अपनी जिंदगी खुद से जीना चाहता है वहीं उसके माता-पिता उसे अपने हिसाब से जीने देना चाहते हैं। कहानी तब शुरू होती है जब कमल मेहरा अपनी शादी की ३०वीं सालगिरह मनाने के लिए एक क्रूज पर सबको टूर पार्टी देते हैं। जहां कमल अपनी डूबती कंपनी को बचाने के लिए अपने बिजनेस कम्पेटिटर की बेटी से कबीर की शादी करवाने चाहता है जबकि कबीर को एक डांसर फराह (अनुष्का शर्मा) से प्यार है। कमल कबीर को शादी के लिए ब्लैकमेल भी करता है और दोनों में एक डील पक्की होती है। क्रूज पर ही आयशा की मुलाकात अपने पुराने प्रेमी सनी (फरहान खान) से होती है। सनी कमल के मैनेजर का बेटा है। कमल ने सनी को अमरिका इसलिए पढऩे भेजा दिया ताकि वो आयशा से दूर रह सके। फिल्म में महत्वाकांक्षा और दरकते रिश्तों की कहानी को बखूबी दिखाया गया है। कमल मेहरा और नीलम मेहरा के बीच क्या होता है, कबीर और फराह मिल पाते हैं कि नहीं, आयशा सनी की हो पाती है कि नहीं ? जानने के लिए पूरी फिल्म देखें।

ऐक्टिंग- फिल्म में अनिल कपूर ने महत्वाकांक्षी बिजनेसमेन के रोल को बखूबी निभाया है। उनकी पत्नी बनीं शेफाली शाह ने भी अपने रोल के साथ न्याय किया है। रणवीर हमेशा की तरह अपने रोल में फिट बैठे हैं तो वहीं अनुष्का के लिए फिल्म में कम संभावनाएं रहीं। प्रियंका का रोल थोड़ा और बड़ा होता तो वो और अच्छा कर सकती थीं। फरहान के रोल को खानापूर्ति के लिए रखा गया लेकिन वे उसमे में जमे हैं। मेहरा फैमली का डॉगी प्लूटो, की उपस्थिति फिल्म में महत्पूवर्ण रही। उसे आवाज आमिर खान ने दिया है। 

म्यूजिक- फिल्म में संगीत की बात की जाए तो कुछ खास नहीं है। हालांकि एक गााना पहले से ही पंसद किया जा रहा है और वा गाना 'गल्ला' है। इसके अलावा फिल्म में संगीत के लिए कुछ खास नहीं है।

देखें की नहीं- अगर वीकेंड पर अगर फैमली के साथ फिल्म देखने का मूड बना रहे हैं तो दिल धड़कने दो देख सकते हैं। फिल्म की ऐंडिंग आपकों पुरानी फिल्मों की तरह लगेगी जिसमें आखिरी में गिले-शिकवे भुलाकर परिवार एक हो जाते हैं। फिल्म की लोकेशंस शानदार है। स्पेन, इटली और फ्रांस की सैर आप फिल्म के माध्यम से कर सकते हैं। फिल्म कहीं-कहीं बोरिंग भी लगती है। कुल मिलाकर फिल्म एक बार देखी जा सकती है।

रेटिंग- 2.5/5

शुक्रवार, 29 मई 2015

वेलकम टू कराची- कॉमेडी और एक्शन के भंवर में फंसी कहानी


इस वीकेंड पर अगर आप कोई कॉमेडी फिल्म देखने की सोच रहे हैं और कॉमेडी के नाम पर अगर आपके जेहन में वेलकम टू कराची का नाम आ रहा है तो प्लीज उसे अपने जेहन से निकाल दें। वेलकम टू कराची में आपको न तो कॉमेडी मिलेगी न ही एक्शन । जैकी भगनानी की पिछली फिल्मों की तरह ये फिल्म भी आपको निराश ही करेगी। हां अगर आप अरशद वारसी के लिए ये पिक्चर देखना चाहते हैं तो देख सकते हैं लेकिन फिल्म आपको निराश ही करेगी।

चित्र गूगल से
कहानी - फिल्म की कहानी शुरू  होती है गुजरात के जामनगर से । शमीम (अरशद वारसी) का नेवी से कोर्टमार्शल हो चुका है और वो केदार पटेल (जैकी भगनानी) के साथ मिलकर जैकी के पिता का बोट चलाता है। दोनों जिगरी यार हैं।  केदार अमरिका जाना चाहता है। इस काम में शमीम उसकी मदद करने की बात कहता है। बिना वीजा के वो लोग समुद्र के रास्ते अमरिका जाने का प्लान बनाते है। दोनों मिलकर एक दिन बोट लेकर निकल पड़ते हैं। समुद्र में आए तूफान के कारण इनकी बोट पाकिस्तान के कराची शहर के बीच पर पहुंच जाती है । इनके पहुंचने के कुछ देर बाद ही वहां बम ब्लॉस्ट होता। शमीम का पर्स बीच पर ही छूट जाता है जो आईएसआईएस की ऑफिसर लॉरेन गॉटलिब  के हाथ लग जाता है। जो इन दोनों को खोजने लगती है। पाकिस्तान से भागने के चक्कर में ये आतंकियों के हाथ लग जाते हैं। इनकी गलती से आंतकियों के कुछ ठिकाने नष्ट हो जाते हैं और वो वीडियो पाकिस्तानी मीडिया तक पहुंच जाता है। पाकिस्तानी सरकार आगामी चुनाव में फायदे के लिए इन दोनों को जबरन पाकिस्तानी बनाकर देश का हीरो बना देती है। आगे ये दोनों वहां से कैसे निकलते हैं ? इनके साथ क्या होता है ? इनका राज खुलता है कि नहीं ? कैसे इनको लेकर राजनीति की जाती है ? कहानी इसी पर आधारित है।  डायरेक्टर आशीष मोहन कहानी को बांधे नहीं रख पाते। पहले हाफ तक तो पूरी पिक्चर बोरिंग लगती है। पिक्चर शायद एक्शन थ्रिलर होती तो ज्यादा अच्छा होता।

ऐक्टिंग- बात अगर ऐक्टिंग की करें तो जैकी भगनानी ने जरुर अच्छा काम किया है। पूरी फिल्म में उन्होंने  कम समझ और अपने में मस्त रहने वाले किरदार को अच्छे से निभाया है
। हां कहीं-कहीं उनकी नामसझी ओवर एक्टिंग लगने लगती है। अरशद वारसी आशा के अनुरूप इस बार छाप छोड़ने में असफल साबित हुए हैं। कई बार उनके एक्सप्रेशन ने उनके डायलॉग का साथ नहीं दिया। कई बार उनसे ओवर एक्टिंग भी करवाई गई।लॉरेन गॉटलिब को फिल्म क्यों रखा गया है ये बात समझ के परे है। फिल्म बिना हिरोइन के भी बन सकती थी जब उनसे कुछ करवाना ही नहीं था। अयूब खोसो, इमरान हसनी छोटे रोल में भी जमे हैं। पाकिस्तानी एक्ट्रेस कुबरा खान को भी फिल्म में देखा जा सकता है।  लेकिन एक्टिंग  के लिए नहीं।   

डायलॉग्स- कुछ खास नहीं है। एकाध को छोड़कर। बॉर्डर हमेशा छोटे होते हैं दूरियां ज्यादा होती हैं, बॉर्डर पर तार नहीं है, चोर तो दोनों ओर रहते हैं। ये कुछ डायलॉग्स है जो नोटिस किए जा सकते हैं।

म्यूजिक- दारू की लोरी को पहले ही काफी एन्टेशन मिल चुका है। संगीतकार रोचक कोहली और और जीत गांगुली का काम फिल्म को देखते हुए अच्छा है।  इसके अलावा शकीरा गाने पर आइटम सॉन्ग भी ठीक है।

देखें की नहीं- अगर आपके पास अतिरिक्त समय और रुपए हों तो एक बार फिल्म देखी जा सकती है, अन्यथा नहीं।

रेटिंग- 2/5

शनिवार, 23 मई 2015

'शर्मा जी हम थोड़े बेवफा क्या हुए आप बदचलन हो गए'- तनु वेड्स मनु रिटर्न्स (Film Review)

चित्र गूगल से साभार।
लगभग 2 साल बाद किसी फ़िल्म का पहला शो देखा। तनु वेड्स मनु रिटर्न्स। पैसा वसूल हो गया। सच कहूं इस फ़िल्म को देखने के बाद मेरा ये दावा और मजबूत हो गया कि कंगना रनोट मौजूदा भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री की सबसे बेहतरीन अदाकारा हैं। फ़िल्म में कंगना ने मनु और दत्तो के रोल का शानदार चित्रण किया है। फिल्म इंटरवल के बाद रफ़्तार पकड़ती है।  लगभग सवा दो घंटे की ये मूवी आपको कहीं बोर नहीं होने देगी।  डायरेक्टर आनंद राय पिछली दो फिल्मों (तनु वेड्स मनु, रांझणा ) की तरह इस बार भी दर्शकों के बांधे रखने में सफल साबित हुए है। 

कहानी - फिल्म तनु वेड्स मनु से आगे बढ़ती है। तनु और मनु की शादी हो चुकी होती है। शादी के चार बाद क्या होता है कहानी इसी पर बेस्ड है। लन्दन में रह रहे तनु और मनु शादी के चार साल बाद तलाक लेने का फैसला लेते हैं। तनु अपने पुराने आशिक (जिमी शेरगिल ) के साथ टाइम पास करने लगती है तो वहीं मनु हरियाणा की एथलीट दत्तों (कंगना) को दिल दे बैठते हैं। पिछली बार की तरह इस बार भी कहानी में कई मोड़ हैं।

एक्टिंग- आर माधवन जहां गंभीर मुद्रा के रोल में जमे हैं तो वहीं जीशान अयूब, स्वरा भास्कर, पप्पी की रोल में दीपक डोबरियाल ने अपने रोल को बखूबी निभाया है। जिमी शेरगिल पिछली बार की तरह इस बार भी छाप छोड़ने में सफल साबित हुए हैं। कंगना ने पत्नी और प्रेमिका का रोल तो वहीं माधवन ने पति और प्रेमी के रोल को शिद्दत से निभाया है।

डायलॉग्स- मैं कोई संतरा हूं कि रस भर जाएगा'  या 'शर्मा जी हम थोड़ा बेवफा क्या हुए आप तो बदचलन हो गये'  या 'पिछली बार भैया दूज पर सेक्स किया था' जैसे शानदार डायलॉग्स भी हैं। जो आपको हंसने में मजबूर कर देंगे। 

म्यूजिक- फ़िल्म का संगीत पहले ही लोगों को काफी पसंद आ रहा है। स्वैगर, मूव ऑन, घनी बावरी सभी गाने फिल्म के मुताबिक ही हैं।

क्या है खा- कुल मिलाकर फिल्म को 2015 की सर्वश्रेठ फ़िल्म कहा जाये तो गलत न होगा। इस संडे फैमिली के साथ आप फिल्म का आनंद ले सकते हैं।  फिल्म में तनु का (कंगना) चुलबुलापन और दत्तू (कंगना) का अक्खड़पन आपको जरूर लुभायेगा। हिमांशु शर्मा की कहानी आपका पूरा मनोरंजन करेगी।


रेटिंग- 3.5 / 5